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गुरु गोविंद सिंह के चारों साहिबजादों का बलिदान | चारों बच्चों को किसने मारा | सिख समाज में कई दिनों के लिए मातम |

 


मुगलिया हकूमत के जुल्मों सितम के खिलाफ लड़ते हुए अपने प्राण न्योछावर करने वाले श्री गुरु गोविंद सिंह के चारों साहेबजादे और दादी माता गुजरी की शहादत को सिक्कों में हमेशा के लिए याद किया जाता है कैसे गुरु जी ने मुगलों के आगे हार नहीं मानी और उनका डटकर सामना किया | आज हम इस आर्टिकल मैं उस काली रात के बारे में बताएंगे |


Source : Theworldsikhnews

जिस दिन गुरूजी इन पहाड़ी राज्यों और मुगलों का सामना करते हुए काली और बारिश भरी रात में अपने परिवार से अलग हो गए थे और कैसे गुरु जी ने चमकौर साहिब युद्ध में अपने दोनों बड़े साहिबजादा को खो दिया और कैसे सरहद में छोटे साहबजादे को नींव में चिनवाया गया | शुरू करने से पहले कृपया हमारे चैनल को फॉलो जरूर करें ताकि इस तरह की और आर्टिकल आप तक पहुंचते रहे |


>>श्री आनंदपुर साहिब का किला छोड़ना और भीषम लड़ाई |


1704 में पहाड़ी राजा और मुगल सेना ने आनंदपुर साहिब किला को चारों तरफ से घेर लिया | उन्होंने लगभग 6 महीनों तक किले को घेरकर रखा | मुगल सेना और पहाड़ी राजाओं ने श्री गुरु गोविंद सिंह जी को आनंदपुर साहिब किला छोड़ने के लिए कहा |और उन्होंने भगवत गीता और कुरान की कसम खाते हुए कहा कि हम आपको कुछ नहीं कहेंगे आपको बस किला छोड़ना पड़ेगा | गुरु जी पहले किला छोड़ने के लिए राजी नहीं थी पर 5 प्यारो के कहने पर गुरुजी किला छोड़ने के लिए राजी हो गए | 


Source: Wikipedia

20 दिसंबर 1705 रात्रि को गुरु जी चारों साहिबजादे , माता गुजरी, उनकी पत्नी ,पांच प्यारों और 100 सिखों समेत श्री आनंदपुर साहिब किला से रोपड़ की ओर चल पड़े | 20-21 की मध्यरात्रि को मुगलों द्वारा प्रतिज्ञा का उल्लंघन किया गया और आनंदपुर साहिब से लगभग 25 किलोमीटर दूर सरसा नदी पर एक स्थल पर गुरु पर हमला कर दिया गया | इस हमले में गुरु का परिवार अलग हो गया यह सप्ताह नाम गुरु जी के परिवार के विछोड़े के नाम पर जाना जाता है , यहां पर एक बहुत महत्वपूर्ण गुरुद्वारा भी बनाया गया है | यहीं से गुरु गुरु जी का परिवार अलग हो गया , माता गुजरी जी और उनके दो छोटे पोते छोटे साहिबजादे एक कश्मीरी पंडित गंगू तेली के साथ पास हरि गांव में चले गए |


Source: Pinerest

गुरुजी की पत्नी भाई मनी सिंह को लेकर दिल्ली की ओर चल पड़े | और गुरु जी के साथ दो बड़े  साहिबजादे पंच प्यारे और 40 सिखों के साथ चमकौर की और चल पड़े और 21 दिसंबर को वहां पर पहुचे | इसी तरह गुरुजी का सारा परिवार सरसा नदी के किनारे बिछड़ गया माता गुजरी जी छोटे साहबजादे अलग हो गए और गुरु जी और उनकी पत्नी अलग हो गए  |


आगे पढ़े : >> कैसे गुरु गोबिंद जी ने अपने ही बच्चो 

को शहीद होने के लिए जंग के मैदान में त्यार करके 

भेजा <<


आगे पढ़े : >>कैसे छोटे साहिबजादों को माता गुजरी के सामने 

नीहों में चिनवाया गया <<

 


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