कैसे गुरु गोबिंद जी ने अपने ही बच्चो को शहीद होने के लिए जंग के मैदान में त्यार करके भेजा |
Source: dailyexcelsiorमुगलिया हकूमत के जुल्मों सितम के खिलाफ लड़ते हुए अपने प्राण न्योछावर करने वाले श्री गुरु गोविंद सिंह के चारों साहेबजादे और दादी माता गुजरी की शहादत को सिक्कों में हमेशा के लिए याद किया जाता है कैसे गुरु जी ने मुगलों के आगे हार नहीं मानी और उनका डटकर सामना किया | आज हम इस आर्टिकल मैं उस काली रात के बारे में बताएंगे |जिस दिन गुरूजी इन पहाड़ी राज्यों और मुगलों का सामना करते हुए काली और बारिश भरी रात में अपने परिवार से अलग हो गए थे और कैसे गुरु जी ने चमकौर साहिब युद्ध में अपने दोनों बड़े साहिबजादा को खो दिया और कैसे सरहद में छोटे साहबजादे को नींव में चिनवाया गया | शुरू करने से पहले कृपया हमारे चैनल को फॉलो जरूर करें ताकि इस तरह की और आर्टिकल आप तक पहुंचते रहे | आज हम इस आर्टिकल में दोनों बड़े साहिबजादों के चमकौर साहिब के जंग के मैदान में शहीद होने की पूरी कहानी बतायेगे तो बने रहे |गुरु गोबिंद सिंह जी के दो बड़े बेटे, साहिबज़ादा अजीत सिंह (17 वर्ष की आयु) और साहिबज़ादा जुझार
सिंह (14 वर्ष की आयु) ने चमकौर की लड़ाई में शहादत प्राप्त की। इस महान युद्ध को
इतिहास के सबसे महान युद्धों में से एक माना जाता है, जहां 40 बहादुर सिख योद्धाओं ने दस लाख से अधिक की सेना के
साथ लड़ाई लड़ी थी। सरसा नदी को पार करने के बाद गुरु साहिब और कुछ सिखो और दो बड़े साहिबजादों ( साहिबजादा अजीत सिंह और साहिबजादा जुधार सिंह ) सहत घोनौला और कोटला निहंग खा से होते हुए चमकौर साहिब दी गढ़ी और चल पड़े | कुछ समय बाद पहाड़ी राजे और मुघलो की सेना भी चमकौर साहिब पहुंच गए | चमकौर साहिब की लड़ाई में गुरु जी के साथ केवल 40 ही सिख थे | फिर भी उन्होंने अद्भुत दलेरी और बहादुरी से दुश्मनो का मुकाबला किआ जो हजारो की तदार में थे | लड़ाई में जाने की लिए गुरु जी ने एक योजना बनाई की सारे सिख एक साथ नहीं जायगे | झुन्ध का फायदा उठाते हुए 5-5 करके सिख भेजेंगे इस से दुश्मनो को समज नहीं आएगा और उनका ज्यादा नुख्सान होगा | जब जंग में जाने की तयारी शुरू हुई तो सिखों ने गुरु जी से साहिबजादों को ना भेजने के लिए बोला पर गुरु जी ने बोला की सभी मेरे बच्चे है ये कहते हुए अपने बच्चो को जंग में जाने के लिए त्यार करने लगे | सिखो ने दुश्मनो के बोहत सेनिको को मौत के घाट उतार दिया | मुस्लमान इतिहासकार लतीफ़ लिखता है " गुरु साहिब जी बोहत बहादुरी से लड़े | और उन्होंने अपने हाथो साही सेना के सेनापति नाहर खान को मार दिआ | " गुरु साहिब के दोनों साहिबजादों अजीत सिंह और जुधार सिंह ने इस लड़ाई में अपनी अतुल बहदुरी का सबूत दिए और दुश्मनो के कई सैनिको को मारकर सहादत पाई | 5 प्यारो में से तीन प्यारे भी लड़ाई में शहीद हो गए | अंत में गुरु साहिब के 40 सिखो में से पांच सिख ही जिन्दा रह गए | इन्होने पांचो ने गुरु साहिब के आगे पराथना की की उन्होंने अपने जीवन की रक्षा के लिए गढ़ी को छोड़ देना चाहिए ताकि मुग़ल अत्याचार प्रति संघर्ष जारी रह सके | गुरु जी ने उनकी पराथना को स्वीकार कर लिआ और रात के हनेरे में गुरु साहिब और उन्होके तीन सिख एक एक करके गढ़ी से बाहर निकल गए | संत सिंह और सांगत सिंह नाम के दो सिख गढ़ी में रह गए जिनको अगले दिन गिरफ्तार करके शहीद कर दिए गया | आगे पढ़े : >>कैसे छोटे साहिबजादों को माता गुजरी के सामने |
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